चतुर पत्नी

चतुर पत्नी

Published on: November 15, 2024

गांव के अंदर एक फूस की मड़ई जिसमें मोहन अपनी पत्नी सुमन के संग में रहता है मोहन का स्वभाव भोला और मददगार है, और दयालु है इसलिए लोग अक्सर उसका फायदा उठाते हैं  इसके विपरीत मोहन की पत्नी चतुर बुद्धि की है मोहन बहुत मेहनती है एकमड़ई के अलावा उसके पास एक जमीन का टुकड़ा है जिस पर वह खेती बाड़ी करता है उसके खेत पर उसके छोटे भाई राजन की नजर गड़ी हुई है जो कि बहुत ज्यादा  लालची स्वभाव वाला है दिन भर का थका हारा मोहन घर आता है 

Seen.. खाना खाते हुए 

मोहन… सुमन अरे ओह  सुमन मैं घर लौट  आया हूं बड़े जोर की भूख लगी है रोटी पका दी है क्या 

सुमन… हा बना दी है  तुम जल्दी से हाथ मुंह धो लो मैं खाना परोसती हूं ,,,,

मोहन पूछते हुए) वैसे क्या बनाया है खाने में

सुमन…तुम खेत से जो तोरई तोड़कर लाए थे उसी की तरकारी और गरमा गरम रोटी बनाई है 

मोहन… उतावली होकर) मुझको तो लगा पड़ोस के घर से रोटी की खुशबू आ रही है चलो अच्छा किया तुमने जल्दी खाना बना लिया मै तो आज पेट भर कर खाऊंगा तुम खाना परोसो में हाथ मुंह धो कर आया 

सुमन जैसे ही खाना परोसती है तभी राजन आ जाता है उसे देखकर पत्नी बुदबुदाकर बोली

सुमन…) पता नहीं ये राजन आज कौन सा मतलब निकालने  आया है …ससुर जी जो कुछ भी छोड़ कर गए थे घर जमीन सब कुछ तो अकेले हड़प गया पता नहीं आज कौन सा नया दुखड़ा रोने आया है 

राजन… दुख जताते) प्रणाम मोहन भैया कैसे हो

मोहनखुश होते ) अरे राजन मेरे भाई कैसा है 

आ जा रोटी खाले और बता काम धंधा कैसा चल रहा है 

राजन.. दुख रोते,)बस भैया खाओ  क्या बताऊं भैया बहुत बुरी हालत है आज कल तो….. इस बार बारिश में मछली पालन का धंधा खोला था  मगर  सारी पूंजी डूब गई घर में खाने के भी लाले पड़ गए हैं मैं और मेरी पत्नी नमक रोटी खाकर रह रहे हैं (नकली आंसू रोते ) आह्ह्ह्ह ह्हह्ह्ह्ह्ह… भैया मैं वह कह रहा था थोड़े समय के लिए अपनी जमीन मुझे दे देते तो मैं उस पर थोड़ी बहुत खेती बाड़ी उगा लेता

राजन के चटपने को बुझते हुए  पत्नी चतुरता से बोली 

सुमन. अजी हमारे पास खुद इकलौती वहीं एक जरा सी जमीन है अगर वह हम राजन देवर जी को दे देंगे तो खुद किस पर खेती करेंगे और कहा से खाएंगे 

राजन..चिढ़कर मन में(यह सुमन भाभी भी न एकदम लाल बुझकर है टांग अड़ाने से बाज नहीं आती मगर मैं भी मीठी छूरी हु हा अपना काम निकलवाने आता है मुझको

चिकनी चुपड़ी बातें करके राजन मोहन का खेत ले लेता है राजन उस जमीन पर कब्जा कर लेता है लगभग पांच छ महीने गुजर जाते है  एक रात पत्नी अपने पति से बोली

सुमन… अजी देखो सर्दियों का मौसम शुरू होने वाला है अब हमें भी अपनी खेती बाड़ी करने के लिए जमीन  चाहिए होगी तुम देवर जी को बोल दो कि हमारी जमीन खाली कर दे 

पता नहीं मुझको उसका इरादा ठीक नहीं लग रहा 

मोहन भोले पन…) अरे दे देगा सुमन , भागा थोड़ी जा रहा है जमीन और राजन मेरा सगा भाई है वो मेरा बुरा नहीं करेगा 

सुमन.. अजी तुम नहीं जानते अपने भाई को वह एक नंबर का ठगेरु और लालची किस्म का है और जमीन जायदाद के मामले में कोई किसी का कितना भी सगा हो धोखेबाजी कर देता है  

आखिरकार वही होता है जिसका चतुर पत्नी को डर होता है  राजन खेत देने से साफ इनकार कर देता है पत्नी मसले को पंचायत में ले जाती है लेकिन मुखिया को पैसे खिलाकर राजन उसे अपने हक में बुलवाता है जिसे अब रोजगार पैदा करने के लिए  गरीब पति पत्नी के पास कोई सहारा नहीं बच जाता घर की माली हालत बहुत  कंगाल हो जाती है अनाज भी खत्म हो जाता है

मोहन मायूसी से) क्या बात है सुमन अभी तक चूल्हा बंद पड़ा है आज खाना नहीं बनाओगी 

डबडबाई आंखों से रसोई को निहारते हुए पत्नी ने कहा

पत्नी..रोता) अजी घर में बचा ही क्या है बनाने को मुट्ठी भर चावल भी तो नहीं की पका दूं 

यह सुनकर मोहन उठ खड़ा होकर जाने लगता है 

सुमन.. अजी कहां चल दिए तुम अब 

मोहन,।। जा रहा हूं देखता हूं किसी का खेत बोने का काम मिल जाए तो घर में कम से कम अनाज भी तो चाहिए न 

सुमन समझाते ) ठीक है जी  जाओ मगर जहां भी काम करना पैसे की बात पहले कर देना वरना ऐसा न हो हर बार की तरह इस बार भी लोग तुम्हें ठग लें

घर की मुश्किलों को देखकर मोहन जगह जगह काम मांगता है पर उसको निराशा ही मिलती है आखिर में वह गांव के सबसे कंजूस जमींदार के पास आता है  

मोहन… सेठ जी कोई काम मिलेगा 

जमींदार. मन) अरे क्या बात है गधा खुद मेरे पास चलकर मूर्ख बनने आया है यह तो बड़ा सीधा है मैं इसे मुफ्त में काम कराऊंगा 

मोहन.. बताइए जमींदार जी काम देंगे 

जमींदार . फुसलाते हुए ) अरे बिल्कुल काम की थोड़ी कमी है मगर मेरी एक शर्त है

मोहन..हिचकते)कैसी शर्त जमींदार जी

जमींदार…मैं तुम्हें 10 कठे की जमीन दूंगा तुम्हें उसे जोतना होगा और फसल बोना होगा अगर तुम दिल लगा कर काम करोगे तो एक महीना पूरा होने पर मैं तुम्हें तनख्वाह दूंगा 

मोहन …जी मुझे मंजूर है 

जमींदार चालाकी से )तो लो इस पर अंगूठा लगा दो 

मोहन ने शर्त मंजूर कर लिया जमींदार ने उसे बहुत ही बंजर खेत पर फसल लगाने को दे दिया , जिसमें कुछ भी उगाना असंभव था। भोला भाला मोहन कड़ी मेहनत से हल चलाकर खेत जोतकर , बीज बोता है, खाद-पानी डालता है। लगभग महीने भर के अंदर धीरे-धीरे फसल तैयार हो जाता है। मोहन खुश होता है कि उसकी मेहनत रंग लाई है वह महीने पूरा होने का इंतजार कर रहा था, 

जमींदार.. एक महीना होने वाला है ये गधा मोहन तो शर्त जीत रहा है ऐसे तो मुझको इसे तनख्वाह देना ही पड़ेगा मुझे अब चतुराई दिखानी होगी,,वैसे  खेत की फसल भी पक गई है आज रात को ही मैं पूरी फसल कटवा लूंगा और इस मूर्ख को कह दूंगा कि गधा खेत चर गया तब मुझको पैसे नहीं देने पड़ेंगे 

जमींदार रातों रात फसल कटवा लेता है और इल्ज़ाम मोहन पर डाल देता है कि उसके ध्यान न देने से गधा खेत चर गया

जमींदार..तुम्हारी वजह से मेरी फसल बर्बाद हो गई। मूर्ख कही के कितने महंगे के बीज  खाद खरीदा था मैने ….तुम्हारे चक्कर में गधा सारी फसल चर गया अब तुम्हें तीन महीने मेरे यहां

 मुफ्त में काम करना पड़ेगा।

मोहन… हे भगवान अब क्या करू 

सुमन को क्या कहूंगा घर जाकर मैं तो ना घर का रहा ना घाट का

मोहन मुंह लटका कर घर चला आया 

उसने  सुमन को सच्चाई नहीं बताई इधर जमींदार उसे  हर दिन में कई कट्ठा जमीनों पर से कपास की फसल तुड़वाता तो कभी खेत से आलू निकालकर बोरी में लदवाकर घर तक मंगवाता “जिसे बिचारा काफी ज्यादा थकावट के चलते मोहन घर जाकर बिना खाए पीये सो जाता अब सुमन जोकि सब देख रही थी सोच में पड़ जाती है

सुमन.. दाल में कुछ तो काला है पिछले दो-चार रोज से ये रात में घर आकर   रोटी भी नहीं खाकर सोते ….कही जमींदार इनसे ज्यादा मेहनत तो नहीं करवा रहा न 

अगले दिन पत्नी मोहन का पीछा करते हुए जमींदार के घर पहुंच गई जहां उसको सब कुछ मालूम पड़ा

सुमन… दैया रे दैया ऐसे तो यह जमींदार मेरे पति का खून चूस जाएगा यह जमींदार कुछ तो खिचड़ी पका रहा है वरना जिसकी कई कठे की फसल जल जाए वह इतना खुश नहीं रह सकता मुझे इस पर नजर रखनी होगी 

पत्नी उसी खेत पर आकर गौर से देखती है जहा उसके पति ने मेहनत से फसल उगाई थी 

सुमन… यह जमींदार झूठ बोल रहा है इस खेत की फसल को गधे ने नहीं चरा  बल्कि फसल काटा गया है जमीन में लगे डंठल पर दरांती के निशान है मतलब  जमींदार ने जरूर कहीं ना कहीं फसल को छुपा दिया है  मुझे चौकन्ना रहना पड़ेगा मुझे इसका भेद खोलकर रहना होगा

इसी तरह वक्त गुजरता है एक दिन सुमन जमींदार को एक गोदाम में जाते हुए देखती है सारी फसल वही थी जिसे देखकर  जमींदार ठहाका मारकर हंसते हुए बोला 

जमींदार.. हा हा हाहा हा क्या सही चूना लगाया मैंने उस गधे मूर्ख मोहन को जिस खेत से मुझे कभी फायदा नहीं हुआ उसने मुझको फायदा कराया मेरी बंजर जमीन पर सोने जैसी फसल उगाई और मैंने रातों-रात उस फसल को कटवा कर छिपा दिया और कह दिया कि खेत गधा खा गया  देखो कैसे मुफ्त में मेरे घर में काम रहा है 

सुमनगुस्सा कर) अच्छा तो इस कपटी जमींदार ने मेरे भोले भाले पति की शराफत का फायदा उठाया है  कोई नहीं अब मैं इसी कि दाव इस पर चलूंगी इसकी सारी चालाकी मै निकालती हु

पत्नी ने दोगुनि होशियारी दिखाई और रात के अंधेरे में सारी बोरि दोनों पति-पत्नी ने अपने घर में रखवा लिया और गोदाम में आग लगा दिया अगले सुबह जब जमींदार ने जला हुआ गोदाम देखा तो उसके सीने पर सांप लोट गया वह छाती पीट कर  हाय हाय करने लगा

जमींदार,।।।रोते), हे राम मेरे गोदाम में किसने आग लगाई सारी की सारी फसल जल कर खाक हो गई मैं लुट गया बर्बाद हो गया आह्ह्ह्ह ह्हह्ह्ह्ह्ह आहुःह्ह्ह ह्हह्ह्ह्ह्ह

तभी पूरा गांव जमींदार के हल्ले को सुनकर आ जाता है मोहन और सुमन भी वहां आ जाते है  सुमन चतुराई से बोली 

सुमन… जमींदार जी एक बात पल्ले नहीं पड़ी अपने तो कहा था आपकी फसल गधा चर गया था  फिर कौन सी फसल यहां पर रखी थी जिसकी आप बात कर रहे है

जमींदार… अरे मैंने झूठ कहा था ताकि मुझे मोहन को तनख्वाह नहीं देनी पड़े कितने मेहनत से रात काली करके चोरी चुपके फसल कटवाई थी कमबख्त सारी मेहनत पर पानी फिर गया 

जमींदार  अपने आप ही सारी सच्चाई उगल देता है पूरे गांव वाले जमींदार के ठगेरू रवैए को जान जाते है तभी सरपंच जी  गुस्साये अंदाज में कहते हैं 

सरपंच.. मुझे नहीं पता था जमीदार कि तुम इतने ठगेरू बेईमान आदमी हो गरीब के हक के पैसे मारते शर्म नहीं आई तुमको अभी के अभी मोहन को उसकी मेहनत की मजदूरी दो समझे

सुमन… धमकाते)केवल 1 महीने की तनख्वाह मत देना जमींदार तुमने जो मेरे पति से 3 महीने और ज्यादा काम कराया है मुझे उसकी भी तनख्वाह चाहिए और तुम्हारी फसल नहीं जली है सही सलामत है क्योंकि हमें किसी का धन खाने की आदत नहीं हम अपनी मेहनत का खाते हैं 

अंत में जमींदार को 4 महीने की तनख्वाह मोहन को देना पड़ता है दोनों पति-पत्नी सारी फसल लाकर रख देते हैं इधर मोहन का लालची भाई राजन को भी अपने करनि का पछतावा होता है जिसे वह अपने भाई का खेत उसे वापस दे देता है दोनों पति पत्नी खुशी से खेती करके हंसी खुशी रहते  है

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