किसान और जादुई बीज

किसान और जादुई बीज

Published on: October 28, 2024

सुबह का समय, मोहन अपने खेत में काम कर रहा है।


मोहन (मन ही मन): “इतनी मेहनत करता हूँ, फिर भी कभी संतुष्ट नहीं हो पाता। अगर मेरे पास थोड़ा ज्यादा होता, तो जिंदगी कितनी आसान हो जाती।”


मोहन खेत की जुताई कर रहा होता है, तभी उसकी कुदाल एक अजीब सी चीज से टकराती है। वह उसे ध्यान से देखता है और पाता है कि यह एक छोटा सा चमकता हुआ बीज है।


मोहन (हैरानी से): “अरे, ये क्या है? ये बीज तो अजीब तरह से चमक रहा है। मैंने ऐसा बीज पहले कभी नहीं देखा।”
अचानक, मोहन को एक रहस्यमयी आवाज सुनाई देती है।


रहस्यमयी आवाज: “मोहन, यह जादुई बीज है। इसे अपने खेत में बो और जो कुछ भी तू चाहेगा, यह बीज वही उगाएगा। लेकिन ध्यान रहे, लालच मत करना।”


मोहन (आश्चर्यचकित होते हुए): “जादुई बीज! क्या यह सच है? अगर ऐसा है तो मेरी सारी समस्याएं हल हो जाएंगी!”


मोहन अपने घर लौटता है और अपनी पत्नी से बात करता है।


मोहन की पत्नी: “आज तुम बहुत खुश लग रहे हो, क्या बात है?”


मोहन: “आज मेरे हाथ एक जादुई बीज लगा है। इसे बोने से मैं जो भी चाहूं, वह मिल सकता है। मैं सोच रहा हूँ कि इसे बोकर सोने का पेड़ उगाऊं। फिर हम अमीर हो जाएंगे और हमारी सारी मुश्किलें खत्म हो जाएंगी।”


मोहन की पत्नी (चिंता जताते हुए): “लेकिन मोहन, जादुई चीजों के साथ हमेशा सावधानी बरतनी चाहिए। लालच करना ठीक नहीं है।”


मोहन: “तू चिंता मत कर। मैं संभाल लूंगा।”


मोहन अगले दिन बीज को अपने खेत में बोता है।


मोहन बीज बोकर सोचता है कि उसे सोने का पेड़ मिल जाए। वह धैर्य से इंतजार करता है, और अगले दिन उसके खेत में एक चमकता हुआ सोने का पेड़ उग आता है।


मोहन (खुश होकर): “अरे वाह! यह तो सचमुच जादू है! अब मैं गांव का सबसे अमीर आदमी बन जाऊंगा।”


गांववाले मोहन के खेत में सोने का पेड़ देखकर हैरान होते हैं।


गांववासी 1: “यह कैसे हो सकता है? मोहन के खेत में सोने का पेड़ उग आया!”


गांववासी 2: “यह तो जादू ही है। मोहन कितना भाग्यशाली है!”


मोहन का जीवन अचानक बदल जाता है। वह अब गांव का सबसे अमीर आदमी बन चुका है, लेकिन उसकी लालच यहीं खत्म नहीं होती।


मोहन (मन ही मन): “अब मैंने सोने का पेड़ पा लिया है, लेकिन मुझे और भी चाहिए। मैं इस जादुई बीज से और भी बड़ी चीजें उगाऊंगा।”


मोहन अब अपने जादुई बीज से और भी कुछ अद्भुत उगाने का फैसला करता है।


मोहन: “इस बार मैं ऐसा कुछ उगाऊंगा जिससे मेरी ताकत और भी बढ़ जाए। सोचता हूँ कि एक जादुई घोड़ा उगाऊं, जो हवा में उड़ सके। इससे मैं पूरे राज्य में सबसे शक्तिशाली बन जाऊंगा।”


मोहन जादुई बीज को फिर से अपने खेत में बोता है और इस बार एक जादुई घोड़ा उगाने की इच्छा करता है। अगले दिन, मोहन के खेत में एक चमकता हुआ सफेद घोड़ा उगता है, जिसके पंख होते हैं। यह घोड़ा हवा में उड़ सकता है और दिखने में बेहद आकर्षक होता है।


मोहन (खुश होकर): “यह तो अद्भुत है! अब मैं इस जादुई घोड़े पर बैठकर पूरे राज्य में अपनी धाक जमाऊंगा। कोई भी मेरे सामने टिक नहीं पाएगा।”


मोहन जादुई घोड़े पर सवार होकर गांव में उड़ने लगता है। गांव के लोग उसे देखकर दंग रह जाते हैं।


गांववासी 1: “यह तो सचमुच जादू है! मोहन अब पूरे राज्य में सबसे ताकतवर आदमी बन गया है।”


गांववासी 2: “लेकिन मोहन का लालच बढ़ता ही जा रहा है। मुझे डर है कि यह जादू उसके लिए मुसीबत का कारण न बन जाए।”


मोहन जादुई घोड़े पर पूरे राज्य में उड़ता है और अपनी शक्ति का प्रदर्शन करता है। लेकिन जल्द ही, उसकी लालच और घमंड उसे और भी बड़ी मुसीबत में डालने वाला है।


सुबह का समय, मोहन अपने सोने के पेड़ और जादुई घोड़े के पास खड़ा है।


मोहन (सोने के पेड़ और जादुई घोड़े को देखकर): “यह पेड़ और जादुई घोड़ा तो बहुत सुंदर हैं, लेकिन अगर मैं पूरे गांव की जमीन का मालिक बन जाऊं, तो मेरी असली पहचान बनेगी। मुझे जादुई बीज का फिर से उपयोग करना चाहिए।”


मोहन की लालच अब और बढ़ गई है। वह फिर से जादुई बीज को अपने खेत में बोता है और इस बार पूरी गांव की जमीन का मालिक बनने की इच्छा करता है।


गांव के लोग मोहन की नई संपत्ति देखकर हैरान होते हैं।


गांववासी 1: “देखो, मोहन ने अब पूरे गांव की जमीन अपने नाम कर ली है। यह कैसे संभव हुआ?”


गांववासी 2: “यह सब उसी जादुई बीज का करिश्मा है। लेकिन मुझे लगता है कि मोहन का लालच उसे कहीं न कहीं ले डूबेगा।”


मोहन की संपत्ति बढ़ती जा रही है, लेकिन उसकी खुशियां कम होने लगती हैं। गांव के लोग अब उससे नाराज रहने लगते हैं, और मोहन के दोस्तों ने भी उससे दूरी बना ली है।


मोहन (खुद से): “मैंने सब कुछ पा लिया है, लेकिन फिर भी मुझे कुछ कमी सी लगती है। शायद मुझे और चाहिए।”


मोहन की पत्नी से बातचीत।


मोहन की पत्नी: “मोहन, तुमने जो कुछ भी पाया है, वह बहुत ज्यादा है। लेकिन अब तुम गांववालों की नाराजगी का सामना कर रहे हो। क्या यह सब सही है?”


मोहन: “मैंने अपनी मेहनत और किस्मत से सब कुछ पाया है। मुझे और भी हासिल करना है, और इसके लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ।”


मोहन की लालच उसे और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।


मोहन: “अब मैं सिर्फ जमीन का मालिक नहीं रह सकता। मुझे इस राज्य का राजा बनना है। मैं जादुई बीज से अपनी अंतिम इच्छा मांगूंगा।”


मोहन की लालच अब हद से पार हो गई है। वह एक और जादुई बीज बोता है और राज्य का राजा बनने की इच्छा करता है।
रहस्यमयी आवाज (दूसरी बार सुनाई देती है): “मोहन, तेरी लालच तुझे बर्बाद कर देगी। ध्यान रख, जादू का गलत इस्तेमाल तुझे सब कुछ खोने पर मजबूर कर सकता है।”


मोहन: “मुझे किसी बात का डर नहीं है। मैं इस राज्य का राजा बनना चाहता हूँ!”


अगले दिन, मोहन को अपनी संपत्ति में अजीब बदलाव दिखने लगते हैं।


मोहन अपने खेत की ओर देखता है और देखता है कि उसका सोने का पेड़ मुरझाने लगा है। धीरे-धीरे उसकी सारी संपत्ति गायब होने लगती है।


मोहन (हैरानी और डर से): “यह क्या हो रहा है? मेरा सोने का पेड़, मेरी जमीन… सब कुछ कैसे खत्म हो रहा है?”
मोहन अब समझने लगता है कि उसकी लालच ने उसे किस मुसीबत में डाल दिया है। लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है।


मोहन अपने घर में उदास और चिंतित बैठा है, उसकी पत्नी उसके पास आती है।


मोहन की पत्नी (सहानुभूति से): “मोहन, मैं देख रही हूँ कि तुम्हारी सारी संपत्ति खत्म हो रही है। क्या यह सब तुम्हारी लालच का परिणाम है?”


मोहन (अफसोस जताते हुए): “हाँ, मैंने अपनी लालच में इतना खो दिया। मुझे लगा था कि जादुई बीज से मैं सब कुछ पा सकता हूँ, लेकिन अब मुझे एहसास हो रहा है कि मैंने क्या गलत किया।”


गांववाले मोहन के पास आते हैं, अब तक उसकी सारी संपत्ति गायब हो चुकी है।


गांववासी 1: “मोहन, हमने तुम्हें पहले ही चेतावनी दी थी कि जादू पर भरोसा मत करो। तुम्हारी लालच ने तुम्हें बर्बाद कर दिया।”


गांववासी 2: “अब देखो, तुमने सब कुछ खो दिया। अब तुम्हारे पास कुछ भी नहीं बचा है।”
मोहन निराश होकर अपने खेत की ओर देखता है, जहां कभी सोने का पेड़ हुआ करता था, वहां अब सिर्फ सूखी मिट्टी रह गई है।


मोहन (खुद से): “मैंने अपनी खुशी और संतोष की जगह लालच को दे दी, और अब मैं खाली हाथ रह गया हूँ।”


मोहन गांव के मंदिर में जाता है, जहां वह ईश्वर से प्रार्थना करता है।


मोहन (आंसुओं में): “हे भगवान, मैंने जो कुछ भी किया, उसके लिए मुझे माफ कर दो। मैंने अपनी लालच में अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल की है। अब मुझे बस अपनी मेहनत का फल चाहिए, बिना किसी जादू के।”


मोहन वापस अपने खेत में जाता है और अपनी पत्नी से बात करता है।


मोहन की पत्नी: “मोहन, अब तुम समझ गए हो कि सच्ची संपत्ति क्या होती है। असली खुशी और संतोष मेहनत और ईमानदारी से आती है, न कि लालच से।”


मोहन: “तुम सही कहती हो। अब मैं अपनी जमीन पर मेहनत करूंगा और जो भी मिलेगा, उसमें संतोष करूंगा।”


मोहन फिर से खेती करने लगता है, इस बार बिना किसी जादुई बीज के भरोसे।


मोहन अब अपनी जमीन पर फिर से मेहनत करने लगता है, और धीरे-धीरे उसकी फसलें उगने लगती हैं। वह अपनी मेहनत के फल से खुश और संतुष्ट रहने लगता है। गांववाले भी उसकी मेहनत की सराहना करते हैं और उसे फिर से अपनाते हैं।


मोहन (खुश होकर): “अब मुझे समझ आ गया है कि असली खुशी और संतोष मेहनत से ही मिलती है। लालच केवल दुख और विनाश लाती है।”


“लालच का परिणाम हमेशा विनाशकारी होता है। असली सुख और शांति संतोष और मेहनत में ही निहित हैं।”

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