पंडित जी की सीख

पंडित जी की सीख

Published on: September 30, 2024

रामू गुस्से में बोला, “भैया, मैं बड़ा हूँ, इसलिए ज़मीन का बड़ा हिस्सा मुझे मिलना चाहिए। ये मेरा हक है।”

श्यामू कड़े स्वर में जवाब देता है, “नहीं भैया, ज़मीन बराबर बँटनी चाहिए। तुम बड़े हो, इसका मतलब ये नहीं कि सब कुछ तुम्हारा हो जाएगा!”

दोनों भाई आपस में झगड़ते हुए पंडित जी के पास पहुँचते हैं, जहाँ वे अपनी समस्या का समाधान चाहते हैं। पंडित जी ने धैर्य से उनकी बातें सुनीं और फिर हल्का मुस्कुराते हुए बोले।

पंडित जी ने कहा, “तुम दोनों की बातें सुनीं। पर इसका हल अभी नहीं मिलेगा। कल शाम मेरे घर आओ, मैं तुम्हें इसका उपाय बताऊंगा। लेकिन एक शर्त है, तुम दोनों को एक काम करना होगा।”

अगले दिन शाम को दोनों भाई पंडित जी के घर पहुँचते हैं। पंडित जी ने उन्हें एक-एक थाली दी और एक अनोखा काम बताया।

पंडित जी बोले, “ये लो, दोनों को इस थाली में खाना है, लेकिन शर्त यह है कि तुम इसे दूसरे के हाथ से पकड़ कर ही खा सकते हो।”

रामू हैरानी से बोला, “दूसरे के हाथ से? ये कैसे होगा पंडित जी?”

श्यामू भी असमंजस में था, “भैया, मुझे तो यह बहुत अजीब लग रहा है।”

दोनों भाई एक-दूसरे की थाली को पकड़ने की कोशिश करते हैं, लेकिन वे असफल रहते हैं। खाना खाने की प्रक्रिया बेहद मुश्किल हो जाती है, और दोनों एक-दूसरे पर आरोप लगाने लगते हैं। थोड़ी देर बाद उन्हें अहसास होता है कि अगर वे एक-दूसरे की मदद करें, तो दोनों आराम से खाना खा सकते हैं।

रामू धीरे से बोला, “लगता है हमें एक-दूसरे की मदद करनी होगी।”

श्यामू ने सहमति जताई, “हाँ भैया, अब समझ आया कि सहयोग से ही काम आसान होता है।”

दोनों भाई एक-दूसरे की मदद करते हुए खाना खाने लगे। उन्होंने यह समझा कि मदद के बिना कोई भी काम पूरा नहीं हो सकता। अगले दिन, पंडित जी ने उन्हें जीवन का महत्वपूर्ण सबक सिखाया।

पंडित जी ने समझाते हुए कहा, “देखो, जब तुमने एक-दूसरे की मदद की, तब ही तुम भोजन कर पाए। ज़मीन का मामला भी ऐसा ही है। अगर तुम दोनों ज़मीन को बराबर बाँटकर संतोष करोगे और एक-दूसरे का सहयोग करोगे, तो जीवन में भी सुख-शांति बनी रहेगी।”

यह सुनकर दोनों भाइयों ने अपना झगड़ा समाप्त कर लिया और ज़मीन को बराबर बांट लिया।

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